चिड़िया और घोंसला

पतझड़ का मौसम था। पेड़ के नीचे हज़ारों तिनके बिखरे थे। एक चिड़िया ने उन तिनकों में से कुछ तिनके चुने और नीम की एक डाल पर सुन्दर-सा घोंसला बुनना शुरू किया। बेतरतीब बिखरे तिनकों को सलीक़े से सहेज कर चिड़िया ने उन्हें घोंसले के रूप में पहचान दी। घोंसला चिड़िया के इस अहसान को अपनत्व समझ अभिभूत रहने लगा।
भीषण गर्मी में चिड़िया रोज़ शाम दिन भर की मेहनत के बाद घोंसले में आती और घोंसला रात भर उसे पलकों पर बैठा दुलारता। समय आने पर चिड़िया ने दो अण्डे दिए। घोंसला अब तक स्वयं को चिड़िया और उसके परिवार का अभिन्न अंग समझने लगा था। चिड़िया जिस बेफ़िक्री से अपने अण्डों को घोंसले के हवाले छोड़ दाने-पानी की खोज में निकल जाती थी, उससे घोंसले का यह विश्वास और दृढ़ होता गया।
जब चिड़िया अण्डों को अपनी देह की गरमी से सेती थी तो घोंसला यह सोच-सोच ख़ुश होता था कि चिड़िया के इस परिवार के निर्माण में वह आधार बन रहा है। यह क्रम महीनों तक यूँ ही चलता रहा। जब अण्डों में से चिड़िया के बच्चे बाहर आए तो घोंसले को भी उतनी ही ख़ुशी हुई जितनी कि चिड़िया को। जब चिड़िया अपने बच्चों की छोटी-छोटी चोंच में दाना डालती थी तो घोंसले को भी एक अजीब सा संतोष मिलता।
चीं-चीं-चीं-चीं की आवाज़ और चिड़िया के परिवार का सुख घोंसले के जीवन का अनिवार्य अंग बन गया। बरसात का मौसम आया तो घोंसला ख़ूब भीगा, लेकिन उसने चिड़िया के विश्वास को कोई आघात नहीं लगने दिया। ख़ुद तर-ब-तर होकर भी उसने हर हाल में चिड़िया और उसके परिवार की रक्षा की। मूसलाधार बारिश में यदि पानी की कोई बूंद बच्चों तक पहुँच जाती तो घोंसला मारे शर्म के गलने लगता!
इसी तरह सुख-दुख सहते बारिश का मौसम भी बीत गया। चिड़िया के बच्चे अब तक थोड़े बड़े हो गए थे। एक दिन शुरुआती सर्दी की सुहानी सुबह में घोंसले ने देखा कि चिड़िया अपने बच्चों को कह रही है कि आज हम इस घोंसले को छोड़ कहीं दूर चले जाएंगे।
घोंसले ने चिड़िया से पूछा कि उसने ऐसा निर्णय क्यों लिया?
चिड़िया घोंसले के प्रश्न को सुनकर पहले तो चुप रही, लेकिन जब घोंसले ने बार-बार आग्रह किया तो चिड़िया ने घोंसले से कहा- तुम्हारे तिनके बहुत कड़े हैं और उनकी चुभन से मेरे बच्चों के शरीर में खरोंचे लग जाती हैं, इसलिए अब हमारा तुम्हारे साथ रहना मुमकिन नहीं है।
चिड़िया का जवाब सुनकर घोंसले के पैरों तले ज़मीन ख़िसक गई। उस पर एक अजीब सी ख़ामोशी छा गई। जब तक वह कुछ समझ पाता तब तक चिड़िया अपने बच्चों के साथ दूर आसमान में उड़ चुकी थी।
कुछ दिनों बाद लोगों ने देखा कि घोंसला पूरी तरह बिखर गया था। उसके कुछ तिनके हवा के साथ इधर-उधर उड़ गए थे और कुछ निष्प्राण से धरती पर जा पड़े, लेकिन कुछ तिनके अभी भी पेड़ की डाल पर पड़े चिड़िया के लौटने का इंतज़ार कर रहे थे।

6 comments:

सूचना एक्सप्रेस said...

bahut zabardast....

IshwarKaur said...

kahani achi hai ab tak kahaniyo me peedh aur chidiya ki charcha hi suni thi lekin aapki kahani bilkul alag hai.

Anonymous said...

aagaaz ye hai to phir anjaam kya hoga!

Ashk said...

sunder rachna ke liye badhai !

ताऊ रामपुरिया said...

भाई रामराम. थारा ब्लाग पढने म्ह नही आरहा. काला बैकग्राऊंड करके हरे अक्षर दिखते कोनी.
जरा बैकग्राऊंड का कलर बदलिये.

और चहे तो वर्ड वैरिफ़िकेशन भी हटा लिजिये. अच्छा रहेगा.

रामराम.

Dr.Bhawna Kunwar said...

Bahut hi achi kahanai likhi aapne bahut 2 badhai aisa hi kuch meri rachna beej khna chahati ha ...vakt ne jin bachho ko sahara diya acha ghar diya vahi eak din us ghar ki jadon ko hi katne lage..