अपने हिस्से का सच

हर व्यक्ति के अपने कुछ सच होते हैंजो केवल उस के ही होते हैं! जिन्हें केवल वही जान सकता है! अन्य कोई उन सत्यों को उस सामीप्य से अनुभव कर ही नहीं सकता! यह किसी के पाँव में चुभे कांटे की तरह है, इस चुभन का वास्तविक अनुभव केवल वही व्यक्ति कर पाता है जिस कि त्वचा को बेंध कर कांटे ने शिराओं को स्पर्श किया है, अन्य कोई उस पीड़ा को महसूस कर ही नहीं सकता! यदि कोई बहुत करीब से, बहुत गहराई से किसी को प्रेम करने का दावा करे..... तब भी नहीं! क्योंकि पीड़ा शब्दातीत होती है! उस को जानने के लिए उसको भोगना आवश्यक होता है..... और इस बात कि कोई गारंटी नहीं है कि किसी दुसरे व्यक्ति के जिस्म में भी काँटा उतने ही गहरे धंसे या नहीं.......

2 comments:

Saleem Khan said...

चिराग जी आपका लेख अच्छा है, वाकई दिल से लिखा गया ........ साधुवाद अच्छा लिखने के लिए

Unknown said...

mere hisse ka sach bhi tune hi bol diya...
TU NA KHUSH RAH KAR.SACH KE CHAKKARME MAT PADA KAR.
bAdHaI hO.....