अमल

सुविचारों का एक पूरा संकलन भी तब तक अधूरा है जा तक उनको अमल में न लाया जाए। गीता की सफलता इसी बात पर निर्भर है की उसके श्रवण के पश्चात कोई अर्जुन गांडीव उठाकर युद्ध करता है या नहीं।

बदलाव

ज़िन्दगी हर पल बदलती है और इसके बदलने का ये सिद्धान्त कभी नहीं बदलता!

मौन

मौन स्वयं में एक संवाद है
इसको समझने की प्रक्रिया, प्रेम में उतरने की प्रक्रिया है.....
शब्दों का चलन बाज़ार में होता है
बाज़ार में मौन नहीं चलता
मौन की भाषा
संवेदना की भाषा है

विश्वास या प्रश्न

एक बार में एक ही काम किया जा सकता है- विश्वास अथवा प्रश्न। दोनों का एक साथ होना सम्भव नहीं है।

अपने हिस्से का सच

हर व्यक्ति के अपने कुछ सच होते हैंजो केवल उस के ही होते हैं! जिन्हें केवल वही जान सकता है! अन्य कोई उन सत्यों को उस सामीप्य से अनुभव कर ही नहीं सकता! यह किसी के पाँव में चुभे कांटे की तरह है, इस चुभन का वास्तविक अनुभव केवल वही व्यक्ति कर पाता है जिस कि त्वचा को बेंध कर कांटे ने शिराओं को स्पर्श किया है, अन्य कोई उस पीड़ा को महसूस कर ही नहीं सकता! यदि कोई बहुत करीब से, बहुत गहराई से किसी को प्रेम करने का दावा करे..... तब भी नहीं! क्योंकि पीड़ा शब्दातीत होती है! उस को जानने के लिए उसको भोगना आवश्यक होता है..... और इस बात कि कोई गारंटी नहीं है कि किसी दुसरे व्यक्ति के जिस्म में भी काँटा उतने ही गहरे धंसे या नहीं.......

बदला कौन?

हम मानें या न मानें लेकिन ये सच है कि हर रिश्ते में एक आकांक्षा हमेशा मौजूद रहती है। हम जब भी किसी की खुशी के लिए कोई परेशानी झेलते हैं, तो महानता का एक अनकहा सा भाव हमारी आंखों में उतर आता है। और फिर बिना सामने वाले को बताये हम ये अपेक्षा रखने लगते हैं की उसे हमारे इस उपकार की क़द्र करनी चाहिए। मज़े की बात ये है की जब ये सब घटित हो रहा होता है तो हमें स्वयं भी इस बात का एहसास नहीं होता कि हम सामने वाले के प्रति ये पूर्वाग्रह पाल चुके हैं कि वह स्वार्थी है। जब तक हमें इस पूरे घटनाक्रम का आभास होता है तब तक सामने वाला हमसे अलग हो चुका होता है। और कई बार तो अलग होने के बाद भी हम इस पूरे घटनाक्रम को समझ नहीं पाते और ख़ुद से पूछने लगते हैं कि आख़िर वो मुझसे बदला क्यों! है ना !

सुकून

परमात्मा ने जब सृष्टी की रचना प्रारंभ की तो सबसे पहले उसने धरा बनाई और मुस्कुरा दिया
फिर आकाश बनाया और गौरवान्वित हो उठा
काव्य और प्रेम जैसे तत्वों को बनाकर वह खिलखिलाया
गृहस्थी बनाई तो उच्छ्वसित हुआ
संगीत का सृजन किया तो आल्हाद में भरकर स्वयं उसके सम्मुख नत-मस्तक हो गया
और फिर पर्वत, नदी, सागर, निर्झर, वन, मेघ, बरखा, पशु-पक्षी आदि बनाते-बनाते जब वह थक गया तो उसने सुकून के दो पल बनाए, उनको सहेजने के लिए माँ बनाई
फिर सुकून के खूबसूरत पल माँ के हवाले कर, माँ की गोद में सिर रख कर सो गया....
है ना!

आत्मविश्वास

बचपन में एक लघुकथा सुनी थी
आज सुबह-सुबह किसी ने वही कथा एसएम्एस के माध्यम से प्रेषित की....
सो, एक अच्छी सीख पुनः ताज़ा हो गयी....
"किसी गाँव में सूखा पड़ा। गाँव वालों ने तय किया कि सब मिलकर बारिश के लिए दुआ मांगेंगे। नियत तिथि पर सारा गाँव एक मैदान में एकत्रित हुआ। सब परमात्मा से वर्षा के लिए दुआ मांगने आये थे, लेकिन केवल एक लड़का ऐसा था जो छतरी साथ ले कर आया था.......।"

कमियाँ कहाँ हैं...

हमारी दृष्टि और हमारा स्वभाव यह तय करता है कि बाह्य तत्व हम पर क्या प्रभाव डालें। इसलिए बेहतर यही है कि यदि कहीं कुछ अखरने लगे तो कमियाँ बाहर न टटोली जाएँ। स्वयं को बदलना ही सबसे बेहतर और सटीक उपाय है। यहाँ ये बात विशेष रुप से ध्यातव्य है कि जो धूप बर्फ़ को गलाने की दोषी कही जाती है, उसी का प्रयोग कर कुम्हार अपने बर्तनों को सख्त करता है। सो, धूप को दोष देने से बेहतर है, हम यह निर्धारित करें कि हम बर्फ़ हैं या गीली मिट्टी।

शुभ रात्रि

रात सदैव रात ही होती है, उसका शुभ और अशुभ होना इस पर निर्भर करता है कि हम दिन भर में कैसे काम करते हैं....

धुन

कुछ गीत बहुत सी धुनों के साथ सुमेलित हो जाते हैं, लेकिन कुछ धुनें किसी गीत के साथ मेल नहीं खाती। लेकिन कोई भी धुन तभी स्मरण में जीवित रहती है जब उसका कोई गीत हो....

रिश्ते में कोई एक....

हर रिश्ते में कोई एक ही ऐसा होता है..... जो दूसरे की ख़ुशी के लिए क़दम-क़दम पर अपनी भावनाओं से समझौता करता है
.....जो उस रिश्ते को बड़ी से बड़ी कीमत पर भी सहेज कर रखना चाहता है
.....जो उस रिश्ते से मिलने वाली एक मुस्कान के लिए हर दर्द को अपनाता है
.....जो उस रिश्ते को दिल कि गहराइयों से महसूस करता है
...... लेकिन यही एक तो उस रिश्ते को ईमानदारी से जी पाता है ना !!!

भावना

भावना यदि पवित्र हो तो शब्द वन्दनीय हो जाते हैं

अकेलापन

अकेलापन दूर करने के लिए यह कतई ज़रूरी नहीं है कि कोई अपना आपके पास हो। यदि कोई दूर होकर भी आपका हाल-चाल पूछ ले तो कई घंटों का अकेलापन दूर हो सकता है। इस एहसास को जीने के बाद ही समझा जा सकता है कि लोग प्रेम-पत्र बार-बार क्यों पढ़ते हैं.....

क्या ज़रूरी है...

यह ज़रूरी नहीं है कि हम अपने हर रिश्ते को हर एक सत्य बतायें, लेकिन यह नितांत आवश्यक है कि रिश्तों में जो कुछ बताया जाये वह पूर्णतया सत्य हो!